लोक कलाओं, पारम्परिक और आधुनिक शैलियों का अनोखा संगम

एक प्रयास है राजस्थान स्टूडियो

भारत की बरसों से चली आ रही सुन्दर संस्कृति और उससे जुड़ीं परम्पराओं ने अपने आप में अनेक कलाओं और विधाओं को समाहित कर रखा है।  इन सभी कलाओं की अपनी एक विशिष्ट शैली है जो उस स्थान और लोगों के इतिहास और उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा दर्शाती है। भारत के अलग-अलग हिस्सों में ऐसी ही ढेरों कलाओं के रंग चारों ओर छितरे  हुए हैं जिनमें राजस्थान प्रदेश अपनी एक खास जगह रखता है। राजस्थान स्टूडियो का यही प्रयास है कि इन सभी खूबसूरत रंगों को आप तक लेकर आएं और आप भी अनुभव कर सकें कुछ अनूठा और बेजोड़। 

राजस्थान स्टूडियो में हमने कई कलाओं और विधाओं को एक साथ लाने का प्रयत्न किया है। इन्हीं का एक छोटा सा परिचय प्रस्तुत है आपके लिए ।  

मिनिएचर पेंटिंग (लघु चित्रकला)

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<strong> <aligncenter> आशाराम मेघवाल <aligncenter> <strong>

आप भी खूबसूरत ब्रश स्ट्रोक का उपयोग कर नई शैलियों को जन्म दे सकते हैं। कला को समर्पित यह विशेष सत्र  आपको राजस्थान के प्रसिद्ध विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में लघु पेंटिंग की सुन्दर कला को सीख कर कुछ नया करने का अवसर प्रदान करता है।

मिनिएचर पेंटिंग के हमारे विशेषज्ञ आशाराम मेघवाल है, जिन्हें कला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए वर्ष 2001 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 45 वर्षों के अनुभव के साथ उन्होंने कला के  क्षेत्र में अपना एक अलग मुकाम बनाया है।

मिनिएचर पेंटिंग :

लघु चित्रकारी राजस्थान में 16 वीं शताब्दी में विकसित कलाओं में से एक थी।  यह एक बेहद सुन्दर कला है जिसमें विस्तृत दृश्य कथाओं का चित्रण किया गया है। बेहद महीन ब्रश के काम के लिए प्रसिद्ध यह शैली कलात्मक रंगों से सजी होती है। 

झिलमिलाते रंगों से सजी लाख की चूड़ियाँ

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<strong> आवाज़ मोहम्मद <strong>

जयपुर शहर की मशहूर लाख की चूड़ियाँ और लाख  से बने सजावटी सामान बड़े ही प्रसिद्ध हैं। इस प्रक्रिया में रंगीन लाख पर डिज़ाइन और नमूने बनाएं जाते हैं जिसमें  प्राकृतिक रूप से प्राप्त लाख पर हीटिंग, संयोजन और हथौड़े से आकार देने जैसी प्रक्रियाएं शामिल हैं। इस कला के विशेषज्ञ आवाज़ मोहम्मद राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित कलाकार है जिन्होंने कई अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है।

उन्होंने देश-विदेश के विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों में 11000 से अधिक छात्रों को इस कला का ज्ञान दिया है।

लाख का काम:

राजस्थान की सदियों पुरानी यह प्रसिद्ध कला विरासत के रूप में पीढ़ी  दर पीढ़ी चली आ रही हैं। आकर्षक रंगों और जीवंत चित्रकारी से सजी ये कला बड़ी ही खास है।  जयपुर शहर में अनेक केंद्र हैं जहाँ लाख का काम किया जाता है। यहाँ आप कलाकारों को काम करते देख सकते हैं और कुछ अनूठा सीख भी सकते हैं ।

संगमरमर पर उकेरी गई कला : फ्रेस्को

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<strong>भवानी शंकर शर्मा और शशि शर्मा<strong>

म्यूरल चित्रकला व फ्रेस्को की रचना की प्रक्रिया का अनुभव करें और जाने कैसे अलग-अलग सामग्रियों, परतों और तकनीकों की विस्तृत प्रक्रिया से गुजर कर एक ‘मास्टरपीस’ की रचना होती है। हमारे विशेषज्ञ भवानी शंकर शर्मा एक माहिर कलाकार हैं जो आपको इस कला से जुड़ी जानकारी और आपकी जिज्ञासा शांत करने के लिए श्रेष्ठ व्यक्ति है। वे पांच बार ललित कला अकादमी के विजेता रह चुके हैं और उनके काम को न केवल भारत में बल्कि कई अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भी प्रदर्शित किया गया है।

अरायश फ्रेस्को पेंटिंग:

अरायश फ्रेस्को पेंटिंग एक स्वदेशी पेंटिंग तकनीक है। इसमें  पेंट को दीवार की गीली सतह पर जल्दी से लगाया जाता है। आज-कल राजस्थान में फ्रेस्को को बहुत प्रोत्साहन मिल रहा है।

लकड़ी से बने ब्लॉक

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<strong> गयूर अहमद <strong>

राजस्थान की ब्लॉक पेंटिंग अपने सुन्दर  चित्रों और कलाकारी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। लकड़ी से बने ब्लॉक का उपयोग कपड़े पर पैटर्न बनाने के लिए किया जाता है जिनसे रंग-बिरंगे स्कार्फ, कुर्तियां, दुपट्टे, चादरे और साड़ियाँ  आदि तैयार किए जाते हैं। ये प्रोडक्ट्स लोकल्स के साथ विदेशी सैलानियों के बीच भी बड़े फेमस हैं। लकड़ी से पारंपरिक ब्लॉक बनाने वाले गयूर अहमद इस कला के विशेषज्ञ हैं। उनके लिए यह सिर्फ एक पेशा नहीं बल्कि उनका जुनून और शौक भी है। 

लकड़ी के नक्काशीदारों के लगभग चार सौ वर्ष पुराने परिवार से सम्बंधित हैं गयूर अहमद। उनके बेजोड़ कौशल के लिए उन्हें वर्ष 2014 में भारत सरकार (कपड़ा मंत्रालय) ने प्रतिष्ठित मेरिट प्रमाण पत्र से सम्मानित किया था ।

लकड़ी के ब्लॉक

पूरे राजस्थान में  हाथ से छपे वस्त्रों की परंपरा प्रचलित है। ब्लॉक प्रिंट की इस शैली में पुष्प और पशु की आकृतिओं का समावेश किया जाता है जो इसकी विशेषता है।

द इंडियन ब्लू पॉटरी

पिंकसिटी यानि जयपुर शहर अपनी ब्लू पॉटरी के लिए भी जाना जाता है। गोपाल सैनी ब्लू पॉटरी के विशेषज्ञ कलाकार है जो पॉटरी के  इस भारतीय रूप के विषय में गहरी जानकारी रखते हैं। ब्लू पॉटरी बनाने की प्रक्रिया में पॉटरी को रंग देने के लिए नीली डाई का प्रयोग किया जाता है और अंतिम चरण में इसे ग्लेज़  में डुबोकर भट्टी में सुखाया जाता है और इस तरह आपकी सुन्दर ब्लू पॉटरी तैयार हो जाती है। 

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<strong> गोपाल सैनी<strong>

गोपाल सैनी महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन, उदयपुर द्वारा शिल्प गुरु पुरस्कार 2012 से सम्मानित कलाकार है। उन्हें अनेक प्रतिष्ठित राज्य और अकादमी स्तर के पुरस्कार प्राप्त हैं। उन्हें इस कला को लोगों तक पहुंचाने का जुनून है और इसी के चलते उन्होंने  भारत, जापान, जर्मनी, रूस और अमेरिका में अनेक लोगों को यह कला सिखाई है।

ब्लू पॉटरी:

यह तकनीक 14 वीं शताब्दी में  भारत तक पहुंची थी। प्रारंभिक अवस्था में, इस कला का उपयोग मध्य एशिया में मस्जिदों, मकबरों और महलों को सजाने के लिए और  टाइल निर्माण के लिए होता था। कुछ सूत्रों के अनुसार जयपुर में शासक सवाई राम सिंह II (1835 – 1880) के समय में इस शिल्प ने नीले मिट्टी के बर्तनों के रूप में लोकप्रियता हासिल करनी शुरू की थी।

मूर्तिकला से तराशे अपने अंदर के कलाकार को

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<strong> हंसराज कुमावत <strong>

यह अवसर है एक कलाकार की आंखों से खुद को देखने का और  इस प्राचीन कला से जुड़ी प्रक्रिया को सीखने का। हमारे विशेषज्ञ कलाकार से सीखें  और समझे मिट्टी की मूर्तिकला की बारीकियों और उपकरणों के उपयोग को। यह कला आपको लोगों से जोड़ेगी और आपको उनके भीतर छुपे भावों को  कला के जरिए दर्शाने का एक मौका भी प्रदान करेगी।

हंसराज कुमावत एक मंझे हुए कलाकार है जो प्राकृतिक सामग्रियों जैसे कि पत्थर, धातु, मिट्टी, लकड़ी और  टेराकोटा के साथ-साथ आधुनिक मानव निर्मित सामग्री जैसे कि सीमेंट और फाइबरग्लास आदि का उपयोग कर खूबसूरत कलाकृतियों की रचना करने के लिए जाने जाते हैं। 

मूर्तिकला:

मिट्टी से सिर की रचना,  मूर्तिकला का एक बेहद सुन्दर कलाओं का रूप है जो  3 डी आर्ट जैसा है। एक निश्चित किस्म की मिट्टी का उपयोग करके इसकी रचना की जाती है। क्ले के साथ काम करना बेहद मजेदार है, और नए कलाकारों के साथ ही एक अनुभवी आर्टिस्ट के लिए भी यह एक अद्भुत अनुभव रहता है।