कला के खूबसूरत संसार को करीब से जानने का माध्यम

एक प्रयास है राजस्थान स्टूडियो

कला की जादुई दुनिया से जुड़े अनुभव को शब्दों में बयां करना संभव ही नहीं। इसे तो केवल महसूस किया जा सकता है…सिर्फ स्वयं  जिया जा सकता है। ये एक माध्यम है जो आपका स्वयं से परिचय करवाता है। आपके अंदर चल रहें तूफानों को भी शांत करने की शक्ति है इसमें।  हमने पहले भी आपके साथ ऐसी ही कुछ सुन्दर  कलाओं के विषय में जानकारी साझा की थी। अब इस कड़ी में पेश है कुछ नई कलाएं जो अपने आप में एक अलग ही दुनिया, एक अलग ही इतिहास रखती हैं। 

राजस्थान स्टूडियो कला क्षेत्र पर आधारित विशेष  सत्रों का आयोजन करता है जहाँ आप अनुभवी एवं पारंगत कलाकारों के साथ स्वयं इस यात्रा का अनुभव कर सकते हैं।

चांदी पर जटिल मीनाकारी (एनामेलिंग)

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<strong> जसवंत कुमार मीनाकार<strong>

धातु की सतह पर सुन्दर  रंगों के सौजन्य से आप भी अपने लिए एक आकर्षक आभूषण बना सकते हैं।

नेशनल मेरिट अवार्ड विजेता जसवंत कुमार मीनाकार के कुशल मार्गदर्शन में आप भी धातु पर की जाने वाली इस अनूठी कलाकारी को सीख सकते हैं जिसे मीनाकारी भी कहते हैं।

अपने द्वारा बनाई कृति को आप जीवन की यादगार के रूप में किसी अपने को भेंट स्वरुप दे सकते हैं या उसे करीने से सजा कर अपने घर की शोभा बढ़ा सकते हैं । 

जसवंत कुमार मीनाकार द्वारा निर्मित उत्कृष्ट कलाकृतियों ने उन्हें एक विशेष स्थान दिलाया है। उनकी सुन्दर कलाकारी के लिए उन्हें कई प्रतिष्ठित उपाधियाँ भी प्राप्त हुई हैं। 

मीनाकारी:

मीनाकारी की शुरुआत पर्शिया में हुई थी।  बाद में यह कला मुगल आक्रमणकारियों के माध्यम से भारत में पहुंची।  हालांकि, समय के साथ इस कला ने भारतीय सांस्कृतिक रूप ले लिया जिसका आज राजस्थान से गहरा जुड़ाव है।

चंदन की खुशबू से रंगी कला

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<strong> महेश जांगिड़ <strong>

इस विशेष सत्र में आपको लकड़ी पर की हुई जटिल और सुन्दर नक्काशी का अनुभव करने का अवसर मिलता है।

महेश जांगिड़ एक माहिर कलाकार है और वे अपने पिता के साथ काम करते हैं। महेश जांगिड़ वर्ष 1993 में राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार से सम्मानित रहे हैं।

उन्होंने अपनी कारीगरी से अपने और अपने परिवार का नाम रोशन किया है। 

आप भी एक कप चाय के साथ, उनसे साझा कर सकते हैं। 

इस कला से जुड़ी बारीकियां व उनके अनुभव और जान सकते हैं कि कैसे यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी तक सहेजी गई है।

चंदन पर नक्काशी:

कई सदियों से यह कला भारतीय मंदिरों की वास्तुकला का अभिन्न हिस्सा रही हैं। चन्दन की लकड़ी पर उकेरी गई यह कला अपने सुगंधित रूप और सौंदर्य के लिए भी जानी जाती है।

तारकशी:  पीतल के तार से सजी  काष्ठकला

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<strong> मोहन लाल शर्मा<strong>

मोहन लाल से सीखें तारकशी की अद्भुत कला और आभूषण बॉक्स या फोटो फ्रेम को अपने मनपसंद पैटर्न से सजाएँ। इस विशेष सत्र में वे आपको अवसर देंगे उनकी कला से परिचय करने का और उनकी कार्यशाला और उपकरणों को देखने और समझने का।  तारकशी और काष्ठकला से जुड़ी तकनीकों को करीब से जानकर आप भी कुछ नया गढ़ सकते हैं ।

मोहन लाल ने शीशम और अन्य माध्यमों पर बहुत ही सुन्दर काम किया है। उन्हें राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष 1985-86 में मेरिट सर्टिफिकेट से और वर्ष 1986-87 में राज्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

तारकशी:

लकड़ी में पीतल (अथवा चांदी या सोना) के एक पतले तार को जड़ने की कला को तारकशी कहते हैं। इसके पैटर्न आमतौर पर ज्यामितीय आकृति के होते हैं और  इनका उपयोग हाथ से तैयार किए गए लकड़ी के बक्से एवं अन्य सजावटी वस्तुओं के रूप को निखारने के लिए किया जाता है। सदियों से राजस्थान की राजसी संस्कृति में इस कला से  रोजमर्रा की वस्तुओं को सजाया जाता है।

चावल के दाने पर ब्रश से लिखना

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<strong> नीरू छाबड़ा <strong>

नीरू छाबड़ा  से सीखें इस अनोखी प्रक्रिया को और जाने कि कैसे चावल के एक छोटे से दाने पर कोई नाम या एक संदेश लिखा जा सकता है।

आप इस प्यारे से छोटे हस्तलिखित दाने को एनकैप्सुलेट कर सकते हैं या उसे अपने प्रियजन को उपहार स्वरुप भी दें सकते हैं।

नीरू छाबड़ा भारत की एक प्रसिद्ध कलाकार हैं।  उनके कौशल को भारत और विदेश में भी बहुत सराहना मिली है।

जाने इस कला को :

इस कला में कलाकार चावल के दाने पर संदेश अथवा नाम लिखता है।  इसके पश्चात दाने को पॉलिश किया जाता है। वर्तमान में भारत में अनेक कलाकार हैं जो इस कला में दक्ष हैं।

कठपुतली की मंत्रमुग्ध करने वाली दुनिया

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<strong> पप्पू भट्ट <strong>

सदियों से भारतीय कला क्षेत्र में कठपुतली का नाटक बहुत लोकप्रिय रहा है। पप्पू भट्ट एक जाने-माने कलाकार हैं जो कठपुतलियों को तार से नियंत्रण करते हैं। आप भी यह मज़ेदार कला सीख एक  कहानीकार और नाटककार के रोमांच का अनुभव कर सकते हैं।

पप्पू भट्ट बरसों से कठपुतली की इस कला से जुड़े हुए हैं और यही उनकी आजीविका का स्त्रोत रहा है।

उनकी हर कठपुतली एक अलग कहानी कहती है।  उनका परिवार आम की लकड़ी को कठपुलियों के रूप में ढालने, उन्हें रंगने और उनके कपड़े सिलने जैसे सभी कार्यों में उनका सहयोग करता है। 

कठपुतली का खेल :

भारत में एक कठपुतली का खेल बहुत लोकप्रिय है। इसमें  किसी मानव, पशु या पौराणिक आकृति से मिलती जुलती कठपुतली के द्वारा कहानियों और किस्सों का मंचन किया जाता है।